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आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥ मोहिः संभ्रान्तः स्थित्वा शान्तिं न प्राप्नोत्। धन निर्धन को देत सदाहीं । जो कोई जांचे वो फल पाहीं ॥ सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव…॥ कहे अयोध्या आस तुम्हारी । जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥ जुग सहस्र जोजन पर भानु। https://shivchalisas.com

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